” सुनिये! नमन जब स्कूल से आये तो प्लीज़ आप ज़रा उससे बात कीजियेगा।दरवाज़ा बंद करके भला कौन-सी पढ़ाई होती है।दरवाज़ा खुलवाती हूँ तो कभी किताब छिपा लेता है तो कभी मोबाइल फ़ोन।मुझे तो कुछ दाल में काला नज़र आ रहा है।कहीं वो..।” ऑफ़िस जाते हुए अपने पति राकेश को नीता ने चिंतित स्वर में टोका।
” ऐसी कोई बात नहीं है..तुम बेवजह ही परेशान हो रही हो..तुम्हारे किचन की शोर से बचने के लिये ही वह बेचारा दरवाज़ा बंद कर लेता होगा।तुम भी ना..।” मुस्कुराता हुआ राकेश बाहर निकल गया।
राकेश के पिता गाँव में खेती-बाड़ी का काम करते थें।तीन बच्चे थें।बड़ी बेटी संध्या थी जिसका विवाह उन्होंने इंटर के बाद ही कर दिया था।राकेश इंजीनियरिंग पास करके दिल्ली में नौकरी करने लगा और नीता से विवाह करके वह वहीं सेटल हो गया।दोनों का एक बेटा था अंश जो पहली कक्षा में पढ़ता था।
राकेश का छोटा भाई नमन गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ रहा था।माँ से उसे विशेष लगाव था।वह जब आठवीं कक्षा में था तब एक बीमारी के दौरान माताजी का देहांत हो गया।पिता को चिंता हुई कि अब इसकी देखभाल कौन करेगा।तब नीता ही बोली कि नमन हमारे साथ रहेगा।अच्छे स्कूल में पढ़ेगा और बड़ा आदमी बनकर परिवार का नाम रोशन करेगा।शहर आने के कुछ ही महीनों बाद नमन पर शहरी रंग चढ़ने लगा।उसकी हरकतों पर नीता टोकती तो उससे चिढ़ जाता।दोस्तों ने भी उसके कान भर दिये कि भाभी तो तेरा भला चाहती ही नहीं है।राकेश भी पत्नी को ही समझाता कि टीन एज के बच्चों को ज़्यादा टोकना ठीक नहीं है।
अब नमन दसवीं कक्षा में था..प्री-बोर्ड में नंबर कम आये तो नीता को फ़िक्र होने लगी। कुछ दिनों से उसने नमन के व्यवहार में भी परिवर्तन देखा तो उसने राकेश को आगाह किया।
एक दिन राकेश के पास नमन के प्रिंसिपल का फ़ोन आया कि तुरंत आकर मिलिये।राकेश के जाने पर प्रिंसिपल साहब ने बताया कि नमन मोबाइल में कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें देखता हुआ पकड़ा गया है।उसका ध्यान भटक गया है।हमने तो वाॅर्निंग दी है, आप लोग भी उसे समझायें।राकेश ‘साॅरी सर’ बोलकर घर आ गया और नीता से बोला,” आने दो नमन को..आज उसकी खाल खींच लूँगा।” पापा को गुस्से में देखकर अंश सहम गया।नीता ने उसे प्यार-से दूसरे कमरे में भेज दिया और पूछने लगी कि क्या बात है।
तब राकेश ने पूरी बात बताई।नीता ने कहा,” अपने गुस्से पर काबू रखिये और उसे प्यार से समझाइये।” स्कूल से आने के बाद नमन पढ़ाई करने लगा तब राकेश उसके पास गया और पूछने लगा कि पढ़ाई कैसी चल रही है?
” क्यों..भाभी ने मेरी शिकायत की है?” नमन उग्र हो गया।तब राकेश प्रिंसिपल साहब की पूरी बात बताते हुए उसे समझाया,” देखो नमन..परीक्षा में दो महीने रह गये हैं..पढ़ाई पर ध्यान दोगे तो तुम्हारा ही भविष्य उज्जवल होगा।अपनी भाभी के स्नेह पर कभी संदेह नहीं करना।वह हमेशा तुम्हारा भला ही चाहती है।ज़रा सोचो..अगर वो मुझे पहले बता देती तो आज प्रिंसिपल सर के आगे हम दोनों को यूँ शर्मिंदा तो न होना पड़ता।”
” साॅरी भइया..।” कहकर नमन रोने लगा।फिर उसने मोबाइल फ़ोन से दूरी बनाकर पढ़ाई पर ध्यान लगाया।दसवीं बोर्ड की परीक्षा में उसने अच्छे अंक प्राप्त किये। उसने अपनी भाभी के पैर छूये और अपने व्यवहार के लिये माफ़ी माँगते हुए बोला,” भाभी..अबसे आपको कभी भी दाल में काला दिखाई दे तो प्लीज़ मुझसे कहने में ज़रा भी हिचकिचाइयेगा नहीं।आप जो भी कहेंगी..मेरे भले के लिये ही…।” नमन को आशीर्वाद देते हुए नीता की आँखें खुशी-से छलछला उठीं।
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