राजीव अपनी लोकोन्मुख और जनपक्षधर कविताओं के मूल में प्रेम के कवि हैं। प्रेम की वजह से ही वह उन चिंताओं तक पहुंच पाते हैं जिनकी वजह से प्रेम घटता है, छीजता है। किसी कवि के लिए प्रेमी होना एक अनिवार्य शर्त है जिसे राजीव कुमार ‘त्रिगर्ती’ पूरा करते हैं और अपने इस तीसरे कविता संग्रह में वे अपने उसी प्रेमी रूप में प्रस्तुत हो रहे हैं। यहां राजीव की प्रेम कविताएं पूरी तरह निजी और एकनिष्ठ दिखाई देती हैं। भावसघन संवेदना वाली यह कविताएं किसी साधक के ध्यानमग्न होने जैसी प्रतीत होती हैं। कवि राजीव कुमार ‘त्रिगर्ती’ कांगड़ा, हिमाचल से आते हैं इसलिए उनकी इन कविताओं को पढ़ते हुए पाठक का मन प्रेमिल होता हुआ पहाड़ों में गुम होने लगता है। कविता से एकाकार होने की यह प्रक्रिया निजता के स्तर पर निश्चित ही अनूठी जान पड़ती है।
प्रेम में रची पगी इन कविताओं में ‘सुन्नी-भुंकू’, ‘चंचलो-, ‘फुलमू-रांझू’ जैसे स्थानीय प्रेमाख्यानों के नायक-नायिका हिंदी कविता में सम्भवतः पहली बार दिखाई देंगे। प्रेम कविताओं में इनकी उपस्थिति हिंदी कविता के प्रेम प्रतीकों का वितान विस्तृत कर सकेगी। राजीव की इन कविताओं में प्रेम किसी अपेक्षा में नहीं दिखाई देता। प्रेम के सघन भावलोक में कहीं-कहीं यह एकालाप प्रतीत होता है जिसमें किसी तरह की कोई चाहना नहीं है। अपनी इस विशेषता के कारण मन का एक ऐसा अधूरापन हमारे सामने प्रस्तुत होता है जिसमें प्रेम की पूर्णता है।
प्रकृति संबद्ध दृश्यों और कहीं-कहीं भाषा में तत्समता के कारण यह कविताएं हिंदी के छायावादी युग की याद दिलाती हैं। राजीव की यह कविताएं विशुद्ध प्रेम कविताएं हैं जिनमें रमकर पाठक का हृदय प्रेमिल हो जाता है। प्रेम की यह निजता अपने केंद्र से विस्तृत होकर सकल संसार को प्रेमिल बनाये, यह कामना है। इन प्रेमसिक्त कविताओं के रचन के लिए राजीव कुमार ‘त्रिगर्ती’ को शुभकामनाएं।
- पीयूष कुमार
बागबाहरा, छत्तीसगढ़
22 जनवरी 2024
(‘प्रेम में होना’ कविता संग्रह की भूमिका से)